शिव मंत्र
Shiva Panchakshari Mantra
ॐ नमः शिवाय ।
Om Namah Shivaya |
Meaning : मैं शिव को नमन करता हूं। शिव सर्वोच्च वास्तविकता हैं, आंतरिक स्व। यह उस चेतना को दिया गया नाम है जो सभी में निवास करती है।
Benefit : इस मंत्र का उचित जप स्वास्थ्य, धन, दीर्घ जीवन, शांति, समृद्धि और संतोष के साथ कायाकल्प करता है और प्रदान करता है।
Rudra Mantra
This is known as Rudra mantra. Rudra Mantra is recited to get blessing of Lord Shiva. It is considered effective for the fulfilment of one’s wishes.
ॐ नमो भगवते रूद्राय ।
Om Namo Bhagwate Rudraay |
Shiv Dhyan Mantra
करचरणकृतं वाक् कायजं कर्मजं वा श्रवणनयनजं वा मानसंवापराधं ।
विहितं विहितं वा सर्व मेतत् क्षमस्व जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शम्भो ॥
Karcharankritam Vaa Kaayjam Karmjam Vaa Shravannayanjam Vaa Maansam Vaa Paradham |
Vihitam Vihitam Vaa Sarv Metat Kshamasva Jay Jay Karunaabdhe Shree Mahadev Shambho ||
Meaning : सभी तनावों, अस्वीकृति, विफलता, अवसाद और अन्य नकारात्मक शक्तियों का सामना करने वाले शरीर, मन और आत्मा को शुद्ध करने के लिए सर्वोच्च एक को समर्पित करें।
Benefit : इस मंत्र के जप के दौरान उत्पन्न होने वाले दैवीय कंपन सभी नकारात्मक और बुरी शक्तियों को दूर करते हैं और रोग, दुख, भय आदि के खिलाफ एक शक्तिशाली सुरक्षा कवच बनाते हैं।
Shiva Gayatri Mantra
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात ।
Om Tatpurushaay Vidmahe Vidmahe Mahadevaay Deemahi Tanno Rudrah Prachodayat |
Meaning : ओम, मुझे महान पुरुष का ध्यान करने दो, हे महानतम भगवान, मुझे उच्च बुद्धि दो, और भगवान रुद्र मेरे मन को रोशन करें
Benefit : कोई भी इस शिव मंत्र को पूरी ईमानदारी के साथ अपने भीतर मौजूद खुशी और दिव्यता की खोज के लिए पढ़ सकता है।
Maha Mrityunjaya Mantra
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्
“Om Tryambakam Yajamahe Sugandhim Pushti-Vardhanam
Urvarukamiva Bandhanan Mrityormukshiya Mamritat॥”
Meaning : हम तीन नेत्रों वाले भगवान की पूजा करते हैं जो सुगंधित हैं और जो सभी प्राणियों का पोषण और पालन-पोषण करते हैं। जैसे पका हुआ ककड़ी अपने बंधन से मुक्त हो जाता है, वैसे ही वह हमें अमरता के लिए मृत्यु से मुक्त कर सकता है।
Benefit : यह मंत्र अकाल मृत्यु को दूर करने के लिए भगवान शिव को संबोधित है। शरीर के विभिन्न हिस्सों पर विभूति लगाते समय भी इसका जप किया जाता है और वांछित परिणाम प्राप्त करने के लिए जप या होमा में उपयोग किया जाता है।
Shiva Mantra
“मृत्युञ्जयाय रुद्राय नीलकन्ताय शंभवे
अमृतेषाय सर्वाय महादेवाय ते नमः”
“Mrutyunjayaaya Rudraaya Neelakantaya Shambhave
Amriteshaaya Sarvaaya Mahadevaaya Te Namaha”
Meaning :हे भगवान शिव, आप वह हैं जिन्होंने मृत्यु पर विजय प्राप्त की है और ब्रह्मांड के विनाश के लिए जिम्मेदार हैं ताकि जीवन फिर से पृथ्वी पर आ सके। हे भगवान, आप नीलकंठ हैं क्योंकि आपका गला नीला है। हम हाथ जोड़कर नमस्कार करते हैं।
Benefit : इस शिव मंत्र में भय को दूर करने और व्यक्ति की आंतरिक क्षमता और शक्ति को बढ़ाने की शक्ति है|
Karpura Gauram
कर्पूरगौरं करुणावतारं
संसारसारम् भुजगेन्द्रहारम् ।
सदावसन्तं हृदयारविन्दे
भवं भवानीसहितं नमामि ॥
Karpuura-Gauram Karunna-Avataaram
Samsaara-Saaram Bhujage[a-I]ndra-Haaram |
Sadaa-Vasantam Hrdaya-Aravinde
Bhavam Bhavaanii-Sahitam Namaami ||
अर्थ:
1: कपूर की तरह शुद्ध सफेद, करुणा का अवतार,
2: सांसारिक अस्तित्व का सार, जिसकी माला नागों का राजा है,
3: हमेशा हृदय कमल के अंदर निवास करें।
4: मैं शिव और शक्ति को एक साथ नमन करता हूं।
लघुरुद्राभिषेक
लघु रुद्राभिषेक विधि
पुजा प्रत्यक्ष करे या काल्पनिक करे कि तांबे का लोटा लेकर उसमें शुध्ध जल, दूध, चावल, दुर्वा, बिल्व पत्र, शमी पत्र, सफेद तिल, काला तिल, गन्ने का रस, शहद, गुड, घी, जूही के पुष्प, चमेली के पुष्प, कनेर के पुष्प, अलसी के पुष्प, आंकड़े के पुष्प, भांग, धतूरा, मिलाकर शिवलिंग उपर धृतधारा चालु रखके उपरोक्त लघुरुद्राभिषेक स्तोत्रम् का पठन ग्यारह बार श्रध्धापूर्वक करने से जीवन में आयी हुई और आनेवाली आधि, व्याधि और उपाधि से छुटकारा मिलता है और सुख शांति प्राप्त होती है।
ॐ
ॐ सर्वदेवेभ्यो नम :
ॐ नमो भवाय शर्वाय रुद्राय वरदाय च।
पशुनां पतये नित्यं उग्राय च कपर्दिने॥1॥
महादेवाय भीमाय त्र्यंबकाय शिवाय च।
इशानाय मखन्घाय नमस्ते मखघाति ने॥2॥
कुमार गुरवे नित्यं नील ग्रीवाय वेधसे।
पिनाकिने हविष्याय सत्याय विभवे सदा।
विलोहिताय धूम्राय व्याधिने नपराजिते॥3॥
नित्यं नील शीखंडाय शूलिने दिव्य चक्षुषे।
हन्त्रे गोप्त्रे त्रिनेत्राय व्याधाय च सुरेतसे॥4॥
अचिंत्यायाम्बिकाभर्त्रे सर्व देवस्तुताय च।
वृषभध्वजाय मुंडाय जटिने ब्रह्मचारिणे॥5॥
तप्यमानाय सलिले ब्रह्मण्यायाजिताय च।
विश्र्वात्मने विश्र्वसृजे विश्र्वमावृत्य तिष्टते॥6॥
नमो नमस्ते सत्याय भूतानां प्रभवे नमः।
पंचवक्त्राय शर्वाय शंकाराय शिवाय च॥7॥
नमोस्तु वाचस्पतये प्रजानां पतये नमः।
नमो विश्र्वस्य पतये महतां पतये नमः॥8॥
नमः सहस्त्र शीर्षाय सहस्त्र भुज मन्यथे।
सहस्त्र नेत्र पादाय नमो संख्येय कर्मणे॥9॥
नमो हिरण्य वर्णाय हिरण्य क्वचाय च।
भक्तानुकंपिने नित्यं सिध्यतां नो वरः प्रभो॥10॥
एवं स्तुत्वा महादेवं वासुदेवः सहार्जुनः।
प्रसादयामास भवं तदा शस्त्रोप लब्धये॥11॥
॥ इति शुभम्॥
बिल्वाष्टकम् स्तोत्र
शिव पूजा में बिल्व पत्रों का बहुत महत्व है, शिव भक्ति और समर्पण से किए हुए एक बिल्वपत्र से प्रसन्न हो जाते है। बिलवास्तकम का वर्णनन किया गया है, इन मंत्रों के साथ बिल्व शिव को चढ़ाने से शिव, ब्रम्हा और विष्णु तीनों प्रसन्न होते है और आपका अभीष्ट हर लोक में प्राप्त होता है।
बिल्वाष्टकम् स्तोत्र
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रियायुधम्
त्रिजन्मपाप संहारं एक बिल्वं शिवार्पणम् ॥
अखण्ड बिल्व पात्रेण पूजिते नन्दिकेश्र्वरे
शुद्ध्यन्ति सर्वपापेभ्यो एक बिल्वं शिवार्पणम् ॥
शालिग्राम शिलामेकां विप्राणां जातु चार्पयेत्
सोमयज्ञ महापुण्यं एक बिल्वं शिवार्पणम् ॥
दन्तिकोटि सहस्राणि वाजपेय शतानि च
कोटि कन्या महादानं एक बिल्वं शिवार्पणम् ॥
लक्ष्म्या स्तनुत उत्पन्नं महादेवस्य च प्रियम्
बिल्ववृक्षं प्रयच्छामि एक बिल्वं शिवार्पणम् ॥
दर्शनं बिल्ववृक्षस्य स्पर्शनं पापनाशनम्
अघोरपापसंहारं एक बिल्वं शिवार्पणम् ॥
काशीक्षेत्र निवासं च कालभैरव दर्शनम्
प्रयागमाधवं दृष्ट्वा एक बिल्वं शिवार्पणम् ॥
मूलतो ब्रह्मरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे
अग्रतः शिवरूपाय एक बिल्वं शिवार्पणम् ॥
बाणासुर द्वारा की गयी शिव-स्तुति (हिन्दी अर्थ सहित)
भक्ति का प्रभाव ही ऐसा है कि वह भक्त की सात पीढ़ी को तार देता है । प्रह्लाद जी की भक्ति से उनका सारा वंश ही भक्त हो गया । प्रह्लाद जी के पौत्र राजा बलि को छलने के लिए भगवान वामन रूप में आए; लेकिन बलि के प्रेमपाश में बंधकर आज तक उनके द्वार पर द्वारपाल बनकर विराजमान हैं ।
इन्हीं राजा बलि के सबसे बड़े पुत्र बाणासुर हुए जो महान शिवभक्त थे । उनकी राजधानी केदारनाथ के पास स्थित शोणितपुर थी । बाणासुक के हजार हाथ थे । जब ताण्डव नृत्य के समय शंकरजी लय पर नाचते, तब बाणासुर हजार हाथों से बाजे बजाते थे ।
इनकी सेवा से प्रसन्न होकर भवानीपति शिव ने वर मांगने को कहा । बाणासुर ने भगवान शिव से वर मांगा—‘जैसे भगवान विष्णु मेरे पिता के यहां सदा विराजमान रहकर उनकी पुरी की रक्षा करते हैं, उसी प्रकार आप भी मेरी राजधानी के पास निवास करें, और मेरी रक्षा करते रहें ।’
भगवान शिव ने ‘तथास्तु’ कहकर बाणासुर के नगर के निकट रहना स्वीकार कर लिया । बाणासुर को ‘महाकाल’ की पदवी और साक्षात् पिनाकपाणि भगवान शिव की समानता प्राप्त हुई । वह महादेवजी का सहचर हुआ ।
बाणासुर उवाच
वन्दे सुराणां सारं च सुरेशं नीललोहितम् ।
योगीश्वरं योगबीजं योगिनां च गुरोर्गुरुम् ।। १ ।।
अर्थात्—बाणासुर बोला—जो देवताओं के सारतत्त्व स्वरूप और समस्त देवगणों के स्वामी हैं, जिनका वर्ण नील और लोहित है, जो योगियों के ईश्वर, योग के बीज तथा योगियों के गुरु के भी गुरु हैं, उन भगवान शिव की मैं वन्दना करता हूँ ।
ज्ञानानन्दं ज्ञानरूपं ज्ञानबीजं सनातनम् ।
तपसां फलदातारं दातारं सर्वसम्पदाम् ।। २ ।।
अर्थात्—जो ज्ञानानन्द स्वरूप, ज्ञानरूप, ज्ञानबीज, सनातन देवता, समस्त तपस्याओं के फलदाता तथा सभी सम्पदाओं को देने वाले हैं, उन भगवान शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ ।
तपोरूपं तपोबीजं तपोधनधनं वरम् ।
वरं वरेण्यं वरदमीड्यं सिद्धगणैर्वरै: ।। ३ ।।
अर्थात्—जो तप:स्वरूप, तपस्या के बीज, तपोधनों के श्रेष्ठ धन, श्रेष्ठ वरणीय तथा वरदायक और सिद्धगणों के द्वारा स्तवन करने योग्य हैं, उन भगवान शंकर को मैं नमस्कार करता हूँ ।
कारणं भुक्तिमुक्तीनां नरकार्णवतारणम् ।
आशुतोषं प्रसन्नास्यं करुणामयसागरम् ।। ४ ।।
अर्थात्—जो भोग और मोक्ष के कारण, नरक-समुद्र से पार उतारने वाले, शीघ्र प्रसन्न होने वाले, प्रसन्नमुख तथा करुणा के सागर हैं, उन भगवान शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ ।
हिम चन्दन कुन्देन्दु कुमुदाम्भोज संनिभम् ।
ब्रह्मज्योति:स्वरूपं च भक्तानुग्रहविग्रहम् ।। ५ ।।
अर्थात्—जिनकी अंगकान्ति हिम, चन्दन, कुन्द, चन्द्रमा, कुमुद तथा श्वेतकमल के समान उज्जवल है, जो ब्रह्मज्योति:स्वरूप तथा भक्तों पर अनुग्रह करने के लिए विभिन्न रूप धारण करने वाले हैं, उन उन भगवान शंकर को मैं प्रणाम करता हूँ ।
विषयाणां विभेदेन बिभ्रन्तं बहुरूपकम् ।
जलरूपमग्नि रूपमाकाश रूपमीश्वरम् ।। ६ ।।
वायुरूपं चन्द्ररूपं सूर्यरूपं महत्प्रभुम् ।
आत्मन: स्वपदं दातुं समर्थमवलीलया ।। ७ ।।
भक्तजीवनमीशं च भक्तानुग्रहकातरम् ।
वेदा न शक्ता यं स्तोतुं किमहं स्तौमि तं प्रभुम् ।। ८ ।।
अर्थात्—जो विषयों के भेद से बहुतेरे रूप धारण करते हैं; जल, अग्नि, आकाश, वायु, चन्द्रमा और सूर्य जिनके स्वरूप हैं, जो ईश्वर एवं महात्माओं के प्रभु हैं और लीलापूर्वक अपना पद देने की शक्ति रखते हैं, जो भक्तों के जीवन हैं तथा भक्तों पर कृपा करने के लिए कातर हो उठते हैं । वेद भी जिनका स्तवन करने में असमर्थ हैं, उन परमेश्वर प्रभु की मैं क्या स्तुति करुंगा ।
अपरिच्छिन्नमीशानमहो वांग्मनसो: परम् ।
व्याघ्र चर्माम्बरधरं वृषभस्थं दिगम्बरम् ।
त्रिशूल पट्टिशधरं सस्मितं चन्द्रशेखरम् ।। ९ ।।
अर्थात्—अहो ! जो ईशान, देश, काल और वस्तु से परिच्छिन्न नहीं है तथा मन और वाणी की पहुंच से परे हैं । जो बाघम्बरधारी अथवा दिगम्बर हैं, बैल पर सवार हो त्रिशूल और पट्टिश धारण करते हैं, उन मन्द मुस्कान की आभा से सुशोभित मुखवाले भगवान चन्द्रशेखर को मैं प्रणाम करता हूँ ।
इत्युक्त्वा स्तवराजेन नित्यं बाण: सुसंयत: ।
प्रणमेच्छकरं भक्त्या दुर्वासाश्च मुनीश्वर: ।। १० ।।
अर्थात्—ऐसा कहकर बाणासुर प्रतिदिन संयमपूर्वक रहकर स्तवराज से भगवान की स्तुति करता था और भक्तिभाव से शंकरजी के चरणों में मस्तक झुकाता था । मुनि दुर्वासा भी भगवान शंकर की ऐसे ही उपासना करते थे ।